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मंगलवार, 5 जनवरी 2021

 

जल परिवहन (Water Transport)



भारत में जल परिवहन( Water Transport in India)




कांडला :



कच्छ खाड़ी के सिरे पर स्थित ज्वारीय बंदरगाह है। गुजरात के अलावा पृष्ठ प्रदेश सहित इसमें राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर शामिल हैं। महत्वपूर्ण यातायात की वस्तुओं में खाद्य तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, खाद्यान्न, नमक, कपड़ा, कच्चा तेल इत्यादि शामिल हैं।


मर्मगाव :



गोवा में अरब सागर तट पर जुआरी नदी के तट पर स्थित है। यह बंदरगाह लौह-अयस्क निर्यात के लिए मुख्य है। इससे मैंगनीज, सीमेंट, अपशिष्ट, उर्वरक और मशीन आयात की जाती है।

न्यू मंगलौर मुंबई तक राष्ट्रीय राजमार्ग 17 (एनएच-17) और रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहां से लौह-अयस्क (कुद्रेमुख से प्राप्त) का निर्यात किया जाता है। पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक और शीरा का आयात किया जाता है।


कोच्चि:



एक प्राकृतिक पोताश्रय है, जहां से उर्वरक, पेट्रोलियम उत्पाद एवं सामान्य नौ-भार (कागों) का परिवहन होता है। स्वेज-कोलंबो मार्ग बंद हो जाने से इस बंदरगाह का सामरिक और व्यापारिक महत्व बढ़ गया है। न्यू तूतीकोरिन गहरा कृत्रिम (समुद्री) पोताश्रय है। समृद्ध पृष्ठ प्रदेश के साथरेल और सड़क मार्ग (एनएच 7A) से भलीभांति जुड़ा हुआ है, यहां से मुख्यतः कोयला, नमक, खाद्य तेल, शुष्क और नौ-भार एवं पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया जाता है।


चेन्नई :



एक कृत्रिम पोताश्रय है, यहां से काफी मात्रा में परिवहन का आवागमन होता है। पेट्रोलियम उत्पाद, कच्चा तेल, उर्वरक, लौह अयस्क और शुष्क नौ-भार (कागों) इत्यादि प्रमुख मद हैं।


लधु एवं मध्यवर्ती बंदरगाह: 



इस प्रकार के कुल 200 बंदरगाह है, जिनमें रेडीपोर्ट (महाराष्ट्र) काकीनाडा (आंध्र प्रदेश) तथा कोझीकोड (केरल) शामिल हैं। ये बंदरगाह बड़े बंदरगाहों के अतिभार को कम करने में सहायक होते हैं तथा इन्हें गहन समुद्री मत्स्यन हेतु आघार वर्षों के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है। ये बंदरगाह मुख्यतः तटीय व्यापार हेतु सुविधा प्रदान करते हैं तथा रेल मार्ग या सड़कों के अभाव वाले क्षेत्रों में यात्री परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराते हैं।


समस्याएं: 


मौजूदा बंदरगाह आधार संरचना व्यापार के प्रवाह को नियंत्रित कर पाने की दृष्टि से अपर्याप्त है। इस कारण पूर्व-बर्थिग विलंब तया जहाजों के आवागमन में देरी जैसी समस्याएं सामने आती हैं। लक्षित यातायात जरूरतों को पूरा करने के लिए और अधिक क्षमता के निर्माण की जरूरत है। बंदरगाहों के साथ भली-भांति संबंध नहीं हैं।

भारतीय पत्तन एशियाई क्षेत्र के कार्यक्षम पत्तनों, जैसे सिंगापुरपत्तन, की तुलना में श्रम और उपकरण उत्पादकता मानकों के संदर्भ में निम्न उत्पादकता का निरंतर प्रदर्शन करते रहे हैं। तथापि, प्रमुख पत्तनों पर दो प्रमुख संकेतकों- प्रत्येक जहाज का उत्पादन और इनके घूमने में लगने वाले औसत समय में, हाल के कुछ वर्षों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।

भारत की तटरेखा बेहद कम दंतुरित है जिसके परिणामस्वरूप देश में मात्र थोड़े ही पत्तनों पर व्यापार हो पाता है।

दक्षिणी दिशा में बड़े जहाजों के खड़े रहने की व्यवस्था हेतु प्रोताश्रय में जगह का अभाव है। मानसून की प्रचंड हिंसा के कारण मुम्बई, कांदला और कोच्चि पत्तनों के सिवाय मई से अगस्त तक पश्चिमी पत्तन बंद रहते हैं। पृष्ठ प्रदेशों में पश्चिमी घाट की महत्वपूर्ण उपस्थिति के कारण सड़क और रेल परिवहन का विस्तार नहीं हुआ है। देश का पूर्वी तट समुद्री लहरों से घिरा हुआ है और कई डेल्टा हैं। पूर्वी तट पर लगातार बालू और मिट्टी के इकट्ठा होने के कारण नौवहन असंभव हो जाता है। जहाजों को कोलकाता-हल्दिया पतन पर पहुंचने के लिए ज्वार-भाटा का इंतजार करना पड़ता है।

सेवाओं की कार्यक्षमता, उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार लाने के क्रम में और पत्तन सेवाओं में प्रतिस्पर्धा भी लाने के लिए पतन क्षेत्र को निजी क्षेत्र की सहभागिता के लिए खोला गया है। यह उम्मीद की गई कि निजी क्षेत्र सहभागिता नई सुविधाओं की स्थापना के लिए लगने वाले समय में कमी करेगा, और अद्यानुतन प्रविधि और संशोधित प्रबंधन तकनीक भी प्रस्तुत करेगा।


जहाजरानी

जहाजरानी भारत के लिए नया नहीं है। देश में आधुनिक जहाजरानी का प्रारंभ 1919 में सिंधिया स्टीम नेविगेशन कंपनी की स्थापना के साथ हुआ, कहा जा सकता है। स्वतंत्रता के समय से,जहाजरानी में उल्लेखनीय प्रगति हुईहै। जहाजरानी उद्योग उच्च प्रतिस्पर्धात्मक व्यावसायिक माहौल में संचालित होता है, और विश्व अर्थव्यवस्था और व्यापार से गहरे रूप से जुड़ा होता है।

इसके द्वारा भारत के महत्वपूर्ण उद्योगों के लिए कच्चे तेल और पेट्रोलियम पदार्थों का आयात होता है। कुल व्यापार का लगभग 90 प्रतिशत भाग का समुद्री परिवहन द्वारा आवागमन होता है, जो जहाजरानी को व्यापार और आर्थिक संवृद्धि के लिए अपरिहार्य बनाता है।

भारत ने जहाजरानी में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति प्रदान की है।

भारत के पास विकासशील देशों के बीच सर्वाधिक विशाल समुद्री बेड़ा है।


जहाजरानी निकाय: राष्ट्रीय जहाजरानी बोर्ड मर्चेट शिपिंग एक्ट, 1958 के तहत्गठित एक सांविधिक निकाय है। भारतीय जहाजरानी निगम (एससीआई) का गठन 2 अक्टूबर, 1961 को किया गया।

एससीआईमाल एवं गात्री सेवाएं, टैंकर सेवाएं, अपतटीय सेवाएं और विशेषीकृत सेवाएं इत्यादि मुहैया करता है। एससीआई के अतिरिक्त, देश में कई जहाजरानी कंपनियां हैं।


जहाज निर्माण:



 भारत के पास चार बड़े और तीन मध्यम आकार वाले शिपयार्ड हैं। कोच्चि शिपयार्ड (कोच्चि), हिंदुस्तान शिपयार्ड (विशाखापट्टनम); गार्डन रीच शिप बिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (कोलकाता), और मझगांव डॉक (मुम्बई) सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े जहाज निर्माण शिपयार्ड हैं। हुगली डॉक और पोर्ट इंजीनियर्स लिमिटेड कोलकाता में हैं।


प्रशिक्षण:

 मर्चेंट नेवी अधिकारियों के लिए पांच प्रशिक्षण संस्थान हैं। मुम्बई में टी.एस.राजेंद्रा नौवहन कैडेट को प्रशिक्षण देता है। लालबहादुर शास्त्री नॉटिकल एंड इंजीनियरिंग कॉलेज (मुम्बई) समुद्र में तैयारी संबंधी पाठ्यक्रम चलाता है। समुद्री इंजीनियरिंग प्रशिक्षण निदेशालय (मुम्बई एवं कोलकाता) मरीन इंजीनियर कैडेट को प्रशिक्षित करते हैं। कोलकाता में भद्रा और विशाखापट्टनम में मेखला डेक और इंजीनियरिंग रेटिंग के लिए समुद्र-पूर्व प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।


तटीय जहाजरानी के लाभ एवं बाघाएं: 

तटीय जहाजरानी ऊर्जा क्षम और परिवहन का एक आर्थिक रूप है, विशेष रूप से वहां जहां, लंबी दूरी यात्रा, भारी मात्रा में वस्तुएं और सामान लदान बिंदु और गंतव्य दोनों ही तटीय क्षेत्र में हों। यह पारस्परिक रूप से प्रदूषण मुक्त है। लेकिन, तटीय जहाजरानी कई परेशानियों का सामना करती है। पोत सामान्यतः बेहद पुराने हैं और इसलिए ऊर्जा की अधिक खपत होती है तथा संचालन और रख-रखाव की उच्च लागत आती है। तटीय जहाजरानी से सामान्यतः कोयला, नमक और सीमेंट जैसे निम्न दरों वाली वस्तुओं का परिवहन होता है। रेलवे इन मदों पर अनुदानित दरें देता है, इस प्रकार तटीय जहाजरानी के लिए असमान प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो जाती है। पतन पर होने वाला विलम्ब एक अन्य गंभीर समस्या है।यह भी एक चिंताजनक बात है कि पोत द्वारा पूर्व से पश्चिम की ओर ले जाए गए कोयले के बाद वापसी के समय पोत के पास कोई समान नहीं होता।




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